रक्षाबंधन के दिन देवीधुरा में फलों से खेली गई बग्वाल

जिले के देवीधुरा स्थित मां बाराही धाम में प्राचीन समय से रक्षाबंधन के दिन आयोजित होने वाले फल फूलों के युद्ध बग्वाल के इस वर्ष भी हजारों लोग साक्षी बने। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री अजय टम्टा बग्वाल मेले के मुख्य अतिथि रहे। सात मिनट तक चली इस बार की बग्वाल में बगवाली वीरों के मध्य फल फूल व पत्थरों के युद्ध में डेढ़ सौ से अधिक बगवाली वीर घायल हुए। इस वर्ष प्रदेश के मुख्यमंत्री धराली आपदा के चलते बगवाल मेले में नहीं पहुंचे। बगवाल युद्ध के साक्षी बनने देश विदेश से हजारों लोग मां बाराही मंदिर धाम में पहुंच बग्वाल के साक्षी बने।
चंपावत जिले की मां बाराही धाम में पाषाण युद्ध के रूप में जाने जाने वाले बग्वाल मेले का इस वर्ष भी भव्य आयोजन हुआ। रक्षाबंधन के दिन प्राचीन समय से आयोजित होने वाली बग्वाल में इस वर्ष चार खामों चम्याल,गहरवाल, लमगड़िया, वालिग के अलावा सात थोकों के योद्धाओं के बीच दिन में शुरू हुआ ।
ये युद्ध फल फूल बाद में पत्थरों से हुआ , मां बाराही के जयकारों के बीच वालिक खाम सफेद,चम्याल गुलाबी,गहड़वाल भगवा, व लमगड़िया पीली पोशाकों के साथ खोलीखाड़ चुर्बा चौड़ मैदान में बग्वाल के लिए उतरे। लगभग सात मिनट तक चले बग्वाल में डेढ़ सौ से अधिक बगवाली वीर घायल हुए। जिन्हें स्वास्थ्य विभाग की टीम ने त्वरित उपचार दिया। बग्वाल युद्ध के बारे में मान्यता है मां बाराही मंदिर देवीधुरा में महाभारत काल से पत्थर युद्ध की परंपरा रही है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में हर वर्ष मां बाराही को प्रसन्न करने के लिए नरबली दी जाती थी।
एक बार जब चम्याल खाम से नरबली के लिए उस परिवार की बारी आई जिसमें एक दादी व पोता ही बचा था, तब दादी ने मां बाराही से रक्षा की गुहार लगाई। मां ने बाराही ने नर बलि की जगह मंदिर परिसर में पत्थर युद्ध कर एक नर के बराबर रक्त बहने पर ही प्रसन्न होने की बात कही।
तभी से मां बाराही धाम देवीधुरा में गहडवाल,चमियाल, लमगड़िया व वालीक खाम के बीच बगवाल की परंपरा अनवरत जारी है.कोरोना काल के दौरान भी यह परंपरा अनवरत जारी रही। वर्ष 2013 में हाईकोर्ट के आदेश के उपरांत पत्थर युद्ध की जगह फल व फूलों से यह युद्ध खेला जाने लगा है।



