देहरादून

अधिवक्ता बोले: हम शतरंज के मोहरे नहीं

23 दिन से ठप न्याय व्यवस्था, बोले अब निर्णायक संघर्ष होगा

राज्यभर में अधिवक्ताओं का आंदोलन मंगलवार को 23वें दिन में प्रवेश कर गया, लेकिन सरकार और बार एसोसिएशन के बीच गतिरोध जस का तस बना हुआ है। अधिवक्ताओं की मांगों पर कोई ठोस फैसला न निकलने से वकीलों में गहरी नाराज़गी है।
बीते दिनों डीएम सबीन बंसल ने धरनास्थल पर पहुंचकर आश्वासन दिया कि अधिवक्ताओं के हितों का हनन नहीं होने दिया जाएगा और उनकी मांगों को सरकार तक पहुँचाया जाएगा। हालांकि अधिवक्ता इसे केवल औपचारिकता मानते रहे हैं, क्योंकि अब तक किसी स्तर पर कोई ठोस कदम देखने को नहीं मिला है।
इस बीच, कई अधिवक्ता मंत्रियों और विधायकों के आवासों पर समर्थन मांगने पहुंचे, लेकिन इस पहल ने वकीलों के भीतर ही असंतोष की आग भड़का दी है। उनका कहना है कि अपनी जायज़ मांगों के लिए जनप्रतिनिधियों की दहलीज पर खड़ा होना अपमानजनक है।
सूत्रों के मुताबिक, आंदोलन अब अंदरूनी धड़ों में बंटने की कगार पर है। आंदोलन लंबा खिंचने से कई अधिवक्ताओं पर आर्थिक संकट भी गहराने लगा है। उनका कहना है कि न आंदोलन का कोई प्रभाव दिख रहा है और न ही सरकार अपने रुख को स्पष्ट कर रही है।
मंत्री गणेश जोशी के आवास पर पहुंचने वाले अधिवक्ताओं को सशर्त प्रवेश की अनुमति मिली। वहां मौजूद एक महिला अधिवक्ता की वकील पोशाक पर मंत्री द्वारा टिप्पणी करने से हालात और बिगड़ गए। अधिवक्ता इसे सम्मान पर चोट बताते हुए सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं।
अधिवक्ताओं का आरोप है कि यह पूरा आंदोलन सरकार की निगरानी में एक औपचारिक धरना बनकर रह गया है। उनका कहना है कि सुबह धरना स्थल पर इकट्ठा होकर भाषण सुनना और फिर घर लौट जाना किसी भी तरह से आंदोलन की ताकत नहीं बढ़ा रहा है।
कई वरिष्ठ अधिवक्ता खुले तौर पर कह रहे हैं कि यदि कार्यकारिणी ने जल्द कोई ठोस निर्णय नहीं लिया, तो वे आंदोलन का स्वरूप बदल देंगे। उनका कहना है हम अब नेताओं के मोहरे नहीं बनेंगे। न हमारा भविष्य दांव पर लगेगा और न हम किसी के स्वार्थ की सीढ़ी बनेंगे। अधिवक्ताओं का साफ कहना है कि या तो सरकार उनकी मांगें स्वीकार करे, या फिर आंदोलन उग्र रूप लेगा।

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