देहरादून

थानो में साकार हुआ लेखक गांव का सपना

देहरादून बना साहित्यिक धाम, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की पहल ने उत्तराखंड को दिया सृजन और संस्कृति का नया केंद्र

जिस उत्तराखंड को अब तक उसके चारधाम और धार्मिक पर्यटन के लिए जाना जाता था, वही प्रदेश अब साहित्य, संस्कृति और कला के क्षेत्र में भी अपनी विशिष्ट पहचान गढ़ रहा है। देहरादून के थानो क्षेत्र, जॉलीग्रांट एयरपोर्ट के समीप, हिमालय की गोद में देश का पहला लेखक गांव अस्तित्व में आया है जो साहित्य, सृजन और संवेदना का नया केंद्र बन चुका है।
यह अनोखी पहल पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक की दूरदर्शी सोच का परिणाम है। लेखक गांव का शुभारंभ 24 अक्टूबर 2024 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, राज्यपाल ले. जनरल गुरमीत सिंह, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और स्वयं डॉ. निशंक के कर-कमलों से हुआ था।
केवल एक वर्ष के भीतर लेखक गांव ने साहित्य, संस्कृति और कला के क्षेत्र में देश-विदेश में अपनी अलग पहचान बना ली है।
3 से 5 अक्टूबर 2025 तक यहां आयोजित अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव ने इस स्थल को वैश्विक पहचान दिलाई। महोत्सव का उद्घाटन केंद्रीय मंत्री किरण रिजीजू ने किया, जबकि समापन सत्र के मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी रहे। देश-विदेश से आए प्रख्यात साहित्यकारों, कवियों, कलाकारों और विचारकों ने इस आयोजन में भाग लिया।
लेखक गांव की अवधारणा डॉ. निशंक की उस सोच का विस्तार है, जिसमें साहित्य, संस्कृति और प्रकृति का संगम एक ही स्थल पर देखने को मिलता है। यहां सृजनशीलता के साथ पर्यावरण संरक्षण, लोकसंस्कृति के संवर्धन और नवोदित प्रतिभाओं के उत्थान पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
यह गांव केवल लेखन का केंद्र नहीं, बल्कि संवेदना और संस्कारों का तीर्थ बन चुका है। भविष्य में इसे उत्तराखंड के पांचवें धाम के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में प्रयास जारी हैं।
लेखक गांव के संरक्षण एवं प्रबंधन में डॉ. निशंक के परिवार की सक्रिय भूमिका है। स्थानीय युवाओं को भी इससे रोजगार और प्रशिक्षण के अवसर मिल रहे हैं। आने वाले वर्षों में यह स्थल साहित्य, कला, आयुष, पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण का आदर्श मॉडल बन सकता है।
लेखक गांव से जुड़े वरिष्ठ साहित्यकारों का कहना है कि यह परियोजना डॉ. निशंक के उस स्वप्न की पूर्ति है, जिसमें हिमालय की पवित्र वादियों को सृजन और चिंतन की भूमि बनाया जाना था।
एक सहयोगी ने कहा, लेखक गांव केवल शब्दों का नहीं, संवेदना और संस्कृति का केंद्र है जहां हर शब्द प्रकृति के साथ संवाद करता है।

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