
देहरादून/हल्द्वानी : उत्तराखंड के तराई क्षेत्र और शारदा नदी बेसिन के हल्के धुंधले सवेरे में, सुरई रेंज की नहरों और जलाशयों के किनारे खड़ी वन विभाग की टीम की आंखें हर पानी की सतह पर टिकी थीं। 2 दिसंबर से शुरू हुई इस गणना अभियान में, 35 सदस्यीय टीम ने दिन और रात दोनों समय में मगरमच्छों की निगरानी की। परिणाम उत्साहजनक थे, कुल 212 मगरमच्छों को चिह्नित किया गया, और अकेले सुरई रेंज में ही 138 मगरमच्छ पाए गए।
2014 में इसी रेंज में मात्र 74 मगरमच्छ देखे गए थे। यह 11 वर्षों में लगभग 86.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है एक ऐसा संकेत जो स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के स्वस्थ होने का प्रतीक है।
यहां बता दें कि सर्वेक्षण का दायरा नौ रेंजों में फैला हुआ है जिसमें शारदा सागर जलाशय, बेगुल, धोरा, नानकमत्ता डैम, काकड़ा कोडाइल ट्रेल और शारदा की विभिन्न नहरें शामिल है। हर क्षेत्र में पानी के किनारे मगरमच्छों की उपस्थिति को ध्यान से नोट किया गया।
वन विभाग ने उन स्थानों को भी जियो-टैग किया, जहाँ पिछले वर्षों में मगरमच्छों ने मानव पर हमला किया। ये डेटा अब स्थानीय पंचायतों और ग्रामवासियों के साथ साझा किया जाएगा ताकि मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम किया जा सके।
डीएफओ हिमांशु बागरी ने कहा यह पहली बार है जब दिन और रात दोनों समय में मगरमच्छों की गणना की गई। जियो-टैगिंग से हमें समझ में आएगा कि किन क्षेत्रों में सावधानी सबसे अधिक जरूरी है। हमारा लक्ष्य मगरमच्छों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ मानव जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी है।
विशेषज्ञों के अनुसार, मगरमच्छों की बढ़ती संख्या पर्यावरण की सेहत और जल-जीवों के संतुलन का स्पष्ट संकेत है। लेकिन उन्होंने स्थानीय लोगों से सतर्क रहने और जल स्रोतों के किनारे हमेशा सावधानी बरतने की अपील भी की।
सुरई की नहरों में पानी की लहरों के बीच जब सूरज की किरणें पड़ती हैं, तो हर छुपा मगरमच्छ किसी कहानी को बयां करता प्रतीत होता है और अब यह कहानी स्थानीय वन्यजीव संरक्षण की सफलता का एक नया अध्याय बन चुकी है।
मगरमच्छ का विवरण
सुरई: 138
गौला: 21
बाराकोली: 17
डौली: 17
किलपुरा: 5
खटीमा: 5
दक्षिणी जौलासाल: 1
रनसाली: 2
काशीपुर: 7



