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राजनीतिनामा: कृषि कानून वापिसी का निर्णय कैसे उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों की चुनावी तस्वीर बदल सकता है?

विगत कुछ वर्षों से पीएम मोदी का राष्ट्र के नाम संदेश की सूचना देशवासियों की धड़कन बढ़ा देता था |  लेकिन इस मर्तबा मोदी का तीनों कृषि सुधार कानून पर रोल बैक का संदेश भावुक करने वाला रहा | बहुमत के वावजूद भी अल्पमत की राय के सम्मान में लिए इस कदम से मोदी ने लोकतांत्रिक मर्यादाओं में बड़ी लकीर खींच दी है | हैरानी है कि कल तक किसानों के एक तबके के विरोध की आग में राजनैतिक रोटियाँ सैकने वाले विपक्षी दल अब इसमें भी भाजपा की राजनैतिक चाल बता रहे है | बरहाल कानून वापिसी का यह कदम राजनैतिक न हो लेकिन राष्ट्रीय राजनीति और विशेषकर चुनावी राज्यों पर इसका असर पड़ना तय है |

मोदी सरकार के कृषि कानून वापिसी का ऐतिहासिक निर्णय पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में गोवा और मणिपुर ही ऐसे राज्य हैं जिन पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला | अब रही बात असर वाले राज्यों की तो सबसे अधिक प्रभावित होगा पंजाब और उसके बाद यूपी उत्तराखंड | बेशक कृषि कानून विरोधी आंदोलन में पंजाब के किसानों का एक तबका ही शामिल था लेकिन राज्य के सभी मजबूत पार्टियों कॉंग्रेस, अकाली दल व आप पार्टी का किसानों की आड़ में मोदी विरोध के लिए किसी भी हद तक जाने की प्रवृति भाजपा ही नहीं देश की अखंडता के लिए भी नुकसानदायक है | चूंकि पंजाब बेहद अहम सीमावृति राज्य है और खलिस्तान आंदोलन के इतिहास को देखते हुए केंद्रीय सुरक्षा ऐजेंसियाँ चिंतित थी | वहीं पंजाब की बदली हुई राजनैतिक परिस्थितियों में पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंद्र सिंह की राष्ट्रवादी लाइन को मजबूती देने के लिए कानून वापिसी आवश्यक था | केंद्र के इस कदम के बाद अब कॉंग्रेस के पूर्व कैप्टन और भाजपा मिलकर चुनाव में तीसरा मजबूत फ्रंट बनाने की स्थिति में आ गए है | पिछले दशकों में अकाली दल से गठजोड़ के चलते भाजपा ने ग्रामीण सिख बहुल क्षेत्रों में पकड़ बनाने की कभी कोशिश नहीं की लेकिन शहरी इलाकों में विशेषकर हिन्दू बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी की पकड़ अच्छी है | ऐसे में कैप्टन अमरिंन्द्र की इमेज और अपने संघटन के बूते पर भाजपा राज्य में अच्छा प्रदर्शन कर परिणामों को त्रिकोणीय बना सकते है | और ऐसी स्थिति में अकाली दल और अमरिंदर को चुनाव बाद एक साथ लाना भी मुश्किल नहीं होगा |

जहां तक बात उत्तरप्रदेश की है तो इस आंदोलन के चलते रहने की स्थिति में पीलीभीत जैसे टकराव के प्रकरणों का बढ़ना तय था | सूत्रों के अनुशार विपक्ष की शह पर कुछ आंदोलनकारी जानबूझ कर माहौल खराब करने के लिए किसी भी सीमा तक जाने की रणनीति पर अमल करने वाले थे | लिहाजा जैसे जैसे चुनावी सरगर्मी तेज होती कानून व्यवस्थता बनाए रखना मुश्किल होता और अंतत भाजपा का नुकसान होना तय था | लेकिन रोल बैक के बाद अब कुछ दिनों के आरोप प्रत्यारोप के बाद सब कुछ सामान्य होने के बाद मोदी योगी की जोड़ी का मैदान में उतरकर जनता तक अपनी बात पहुंचाना आसान होगा जिसका फाइदा पार्टी को मिलना तय है |

अब रही बात उत्तराखंड की तो यहाँ आंदोलन का असर पहले भी अधिक नहीं था | जो थोड़ा बहुत असर था तो वह रुड़की और उधमसिंह नगर के ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित था और वह सब भी सीमा से सटे यूपी के जिलों में जारी आंदोलन को मदद करने के लिए | वहीं कानून वापिसी से राज्य में भी गाहे-बगाये होने वाली चर्चा पर विराम लगने से भाजपा को अपने मुद्दों पर चुनाव को लेकर जाने में आसानी होगी |

वहीं इन सारे समीकरणों से अलग पीएम मोदी की एक बड़ी फैन फोलोविंग है, ऐसे में उनके द्धारा दिये मार्मिक संदेश और माफी मांगना उन्हे भाजपा के पक्ष में एकजुट होने में बेहद मददगार साबित होगा | इनमें एक बड़ा हिस्सा फ्लोटर वोटों का भी है जो अक्सर चुनाव परिणामों की तस्वीर बदलने में अहम रोल निभाता है |  

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